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सैनी समाज प्रतिनिधि मंडल में आपका स्वागत

सैनी समाज प्रतिनिधि मंडल सैनी समाज के लोगों को एक साथ आने में मदद करने के लिए एक संगठन है। यह ऊर्जावान उत्साही और समर्पित व्यक्तियों का एक समूह है जो किसी भी रूप में सामुदायिक समुदाय की सेवा करने के लिए हमेशा खुश रहते हैं चाहे वह वित्तीय या शैक्षिक या स्वास्थ्य से संबंधित मामले आदि हो। मुख्य रूप से, यह संगठन के उत्थान के लिए शैक्षिक और नौकरी उन्मुख कार्यक्रमों के लिए काम करता है। समुदाय। फिर भी, यह रक्तदान परिसर, अखिल भारतीय सैनी अधिकारियों की बैठक, सफल और प्रतिभाशाली व्यक्तियों विशेष रूप से बच्चों आदि के लिए प्रतिभा सुविधा कार्यक्रम आयोजित करने जैसे कल्याण कार्यक्रमों के क्षेत्र में उद्यम करने से नहीं रोकता है। इसके सदस्य लोगों को काम करने के लिए प्रेरित करने के लिए काम करते हैं। समुदाय। यह समुदाय कल्याण के महान कारण के लिए समुदाय के उदार परोपकारी व्यक्ति को समन्वय और जोड़ने के लिए भी समर्पित है। समुदाय के भाई-बहनों की समस्या के समाधान के लिए हमेशा शत-प्रतिशत प्रयास करता है।

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वर्तमान समय इन्टरनेट की कनेक्टीविटी का है। आज प्रत्येक कार्य इन्टरनेट के माध्यम से होता है। इंटरनेट संवाद स्थापित करने का सशक्त माध्यम है। जो लोगों को एक-दूसरे से जोड़ता है। इसी उद्देश्य से सूचना प्रोद्योगिकी का उपयोग करते हुए इस वेबसाइट को तैयार किया गया है। विज्ञान के क्षेत्र में सूचना प्रोद्योगिकी का आयाम जुड़ने से हुई प्रगति ने हमें अनेक प्रकार की सुविधा प्रदान की है। 20वीं सदी में कम्प्यूटर क्षेत्र में आई सूचना क्रान्ति के कारण सूचनाओं की प्राप्ति और इनके संसाधन में काफी तेजी आई है। कम्प्यूटर के माध्यम से सूचना के राजमार्ग में इंटरनेट पर चलकर मानवजाति एकीकरण के लिए प्रयत्नशील है। समाज को नये आयाम प्रदान करने के उद्देश्य से जोधपुर माली सैनी समाज एवं बहुप्रतियोगी प्रशिक्षण संस्थान एवं श्रीमती कमलादेवी गहलोत कम्प्यूटर केन्द्र ने इस वेबसाइट को तैयार किया है। जिससे समाज की गतिविधियों में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है, इसके परिणाम भी अपेक्षित एवं उत्साह वर्धक प्राप्त हो रहें है। हम सभी युवावर्ग, अनुभव सिद्ध समाज सेवकों, तकनीकी ज्ञान प्राप्त समाज के बन्धुओं से अनुरोध करते है कि इस वेबसाइट को अपन अनुभवों तथा नई जानकारियों से युक्त करने में सहयोग व सुझाव प्रदान करें। भविष्य में राज्य/केन्द्रीय सरकार के अधिकारियों/कर्मचारियों को लॉगईन व पासवर्ड देने का लक्ष्य है। जिससे अधिकारी/कर्मचारी स्वयं ही अपना संक्षिप्त परिचय दर्ज कर सकते है। साथ ही समाज की प्रमुख गतिविधियों के संबंध में जानकारी प्रदान कर सकें। परन्तु, यह भागीरथी प्रयास तभी सफल होगा, जब हम सभी इसके भागीदार बनकर सहयोग प्रदान करेंगे। इसी आशा, कामना व उत्कृष्ठता को मद्देनजर यह प्रयास आप सभी बन्धुओं को समर्पित।
सैनी समाज

सैनी समाज की गौरव गाथा

सैनी समाज का इतिहास किसी भी जाती, वंश एव कुल परम्परा के विषय मे जानकारी के लिये पूर्व इतिहास एव पूर्वजो का ज्ञान होना अति आवश्यक है| इसलिए सैनी जाती के गोरव्पूर्ण पुरुषो के विषय मे जानकारी हेतु महाभारत काल के पूर्व इतिहास पर द्रष्टि डालना अति आवश्यक है| आजसे ५१०६ वर्ष पूर्व द्वापरकाल के अन्तिम चरण मे य्द्र्वंश मे सचिदानंद घन स्वय परमात्मा भगवान् श्रीकृषण क्षत्रिय कुल मे पैदा हुए और युग पुरुष कहलाये| महाभारत कई युध्दोप्रांत यदुवंश समाप्त प्राय हो गया था|परन्तु इसी कुल मई महाराज सैनी जिन्हे शुरसैनी पुकारते है| जो रजा व्रशनी के पुत्र दैव्मैघ के पुत्र तथा वासुदेव के पिता भगवन श्रीकिशन के दादा थे| इन्ही महाराज व्रशनी केछोटे पुत्र अनामित्र केमहाराज सिनी हुये, इस प्रकार महाराज शुरसैनी तथा सिनी दोनों काका ताऊ भाई थे| इन्ही दोनोंमहापुरुषों के वंशज हम लोग सैनी क्षत्रिय कहलाये| कालांतर मई वृशनी कुल का उच्चारण सी वृ अक्षर का लोप हो गया और षैणी शब्द उच्चारित होने लगा जो आज भी उतरी भारत के पंजाब एव हरियाणा प्रांतो मे सैनी शब्द के एवज मे अनपढ़ जातीय बंधू षैणी शब्द ही बोलते है, और इसी सिनी महाराज के वंश परम्परा के अपने जातीय बह्धू सिनी शब्द के स्थान पर सैनी शब्द का उच्चारण करने लगे है| जो सर्वथा उचित और उत्तम है| कालांतर मे वृशनि गणराज्य संगठित नहीं रहा और भिन्न भिन्न कबीलों मे विभाजित होकरबिखर गया| किसी भी भू भाग पर इसका एकछत्र राज्य नहीं रहा किन्तु इतिहास इस बात का साक्षी है| की सैनी समाजके पूर्वज क्षत्रिय वंशएव कुल परम्परा मे अग्रणी रहे है|

महाभारत काल के बाद सैनी कुल के अन्तिम चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रेमादित्य हुए है जिन्हे नाम पर आज भी विक्रम सम्वत प्रचलित है| इससे यह स्पष्ट है की सैनी जाती का इतिहास कितना गोरवपूर्ण रहा है| यह जानकर सुखद अनुभूति होती है की हमारे पूर्वज कितने वैभवशाली वीर अजातशत्रुथे| भारत राष्ट्र संगठित न रहने पर परकीय विदेशी शासको की कुद्रष्टि का शिकार हुआ तथा कुछ शक्तिशाली कबीलों ने भारत को लुटने हेतु कई प्रकार के आक्रमण शुरू कर दिये, यूनान देश के शासक सिकंदर ने प्रथम आक्रमण किया किन्तु पराजित होकर अपने देश यूनान वापस लोट गया| इसके बाद अरब देशो के कबीलों ने भारत पर आक्रमण कर लूटपाट शुरू कर दी और भारत पर मुस्लिम राज्य स्थापित कर कई वर्षो तक शासन किया| इसके बाद यूरोप देश के अग्रेज बडे चालाक चतुर छलकपट से भारत पर काबिज हो गये| अन्ग्रजो ने भारत के पुराने इतिहास का अध्यनकरने यहा के पूर्व शासको एव जातियों के इतिहास की जानकारी हेतुकई इतिहासकारों को भारतकी भिन्न प्रांतो मे इतिहास संकलन हेतु नियुक्त किया | एक प्रसिध्द अंग्रेज इतिहासकार 'परजिटर' ने भारत की पोरानिक ग्रंथोके आधार पर अपने वृशनी वंश का वृक्ष बिज तैयार किया महाराज वृश्निजी के चोटी पुत्र अनामित्र केमहाराज सीनी हुये इसी सिन्नी शब्द का पर्यायवाची शब्द 'सैनी' हुआ जिनकी वंशज कहलाते है| (देखे भारत के प्राचीन इतिहास के संकलन मे सं १९२२ मे पेजनं. १०४ सी १०६ तक )| इस प्रकार भारत के प्राचीन ग्रंथ इतिहास पुरान तथा महाभारत के अनुशासन पर्व मे भी महाराज सैनी के सम्बन्धमे उल्लेख मिलता है| १. वायु पुराण अध्याय ३७शुरसैनी महाराजर्थी एक गुनोतम तथा श्लोक १२९ जितेन्द्रिय सत्यवादी प्रजा पालक तत्पर : २. महाभारत अनुशासन पर्वअध्याय १४९ 'सदगति स्तक्रती संता सदगति सत्य न्याय परायण' तथा श्लोक ८८ मे शुर सैनी युद्ध स्न्निवास सुयामन: महाराज शुरसैनी चन्द्रवंशी सम्राट थे इनका राज्य प्राचीनकाल की हस्तिनापुर (वर्मन दिल्ली क्षेत्र पंजाब तथा मथुरा वृदावन उतर प्रदेश) मे फैला हुआ था|इसका वर्णन चाणक्य श्रिषी ने चन्द्रगुप्त मोर्य के शासनकाल मे २५० वर्ष पूर्व था उसका वर्णन कोटील्य अर्थशास्त्र मे किया हैकी यदुवंश (षैनी) राज्य एव सूर्यवंशी गणराज्य बिखर चुकाई थे| इन राजपरिवारो के कुछ शासको ने बोद्ध धर्म ग्रहण कर लिया कुछ एक नेजीविकोपार्जन के लिय कृषि को अपना लिया| यूनान के सिकंदर के साथ जो यूनानी इतिहासकार भारत मे आये थे| उन्होनेइतिहास संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओमे उच्च कोटी की वीरता हे।

प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों काइतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार 'मैग्स्थ्निज' ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था| महाभारत कई मासा प्रष्ठ१४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यहपता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव काअपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है| संकलन करते समय यदुवंशीतथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया हे। सैनी शब्द के विवेचन से सैनी समाज के अपने लोगो को भली भाती ज्ञान हो| हमने अपना कार्यक्षेत्रकृषि अपना लिया| बादशाह को चाहिये ही क्या था? उसने सोचा कई बहुत ही अच्छा हुआ क्षत्रिय समाज अब संगठित नहीं रहा, क्षत्रियो कई शक्तिछिन्न भिन्न हो गये| अब आराम से दिल्ली का बादशाह बना रहूगा | विक्रम सम्वत १२५७ अथार्त आज से ८०० वर्ष क्षत्रिय समाज राजपूतो से अलग हुये और कृषि कार्य अपना कर सैनी बने|कुछ क्षत्रिय जो सैनी शब्द से पहचाने जाने लगे

हमारे रत्नों के विचार

कश्मीर से कन्याकुमारी तक, अनेकता को एकता में संजोये हुए, अतुल्य है हमारा भारत ।